अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नीम का ये पेड़
 

 

नीम का ये पेड़
बाबा की निशानी है
इसी के नीचे हुई बेटी सयानी है

हरी पत्ती
हुए उसके हाथ पीले हैं
नयी फूटी कोंपलों के नयन गीले हैं
पीर माँ के द्वार की
बरसों पुरानी है

पड़े झूले डाल जैसी
खुली बाँहों पर
धूप का है लेंस दादी की निगाहों पर
टहनियाँ हैं या कि चश्में
की कमानी है

है युगों से
समय के मसि और कागद सी
फेफड़ों में भर रही है हवा औषधि सी
मगर अपनी छाँव से
खुद ही विरानी है

पास के पाकड़
कभी सागौन वाले हैं
कई किस्से नीम की दातौन वाले हैं
घर नहीं है मगर घर की
राजधानी है

बड़े - बूढ़े
दरी डाले खाट डाले हैं
जल रही धरती निबौली के निवाले हैं
लग रहा परिवार का ही
एक प्राणी है

-यश मालवीय
२० मई २०
१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter