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टेसू दहकें दोपहर

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ढाक कहो, टेसू कहो, अथवा कहो पलाश।
ऊपवन में पर हैसियत, होती इसकी खास।।

उपवन सब रँग-रस बने, बिहँसें फूल पलाश।
बहकें तितली, भृंग भी, मानव मन उल्लास।।

छुट्टी पर सारे गये, जब पलाश के पात।
तब निज पुष्पों से सजे, हर पलाश का गात।।

टेसू-फूलों से बना, रखा बसंती रंग।
गोरी होरी खेलती, खूब पिया के संग।।

टेसू दहकें दोपहर, शान्त गुजारें रात।
जग भर में विख्यात हैं, तीन ढाक के पात।।

संतोष कुमार सिंह
२० जून २०११

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