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टेसू बाँटे रंग पराग   

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पतझड़ से सब रंग बचाकर
ऋतु छेड़े वासंती राग
गौरी के अधरों पर दहका
जैसे प्रीतम का अनुराग

राधा अमृत में भीगी है
कृष्ण मुरारी खेलें फाग
जितनी गहरी प्रेम कहानी
उतने ऊँचे होते भाग

जंगल ने सूनेपन बाँटे
टेसू बाँटे रंग - पराग
रंग ओढ़कर रहे छुपाते
अपने मन के गहरे दाग

विरही हो कर देह झड़ी है
भगवा ओढ़ लिया वैराग
जब टेसू ने पीर जलाई
टहनी टहनी फूली आग

-परमेश्वर फुंकवाल
२० जून २०११

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