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मकई के दाने






 
भूज रहा भड़भुज्जा देखो
मकई के दाने
आए हैं बच्चों के दादा
लावा बनवाने

भट्टी हुई पुरानी हैं हाथ थरथराते
अभ्यास पर पुराना दाने हैं खिलखिलाते
पीली है जिनकी कोठी हर बार यहीं आते
भूजोगे भाई कब तक दो बार पूछ जाते

अपने खेतों से लाये हैं वे
अनमोल खजाने
भूज रहा भड़भुज्जा देखो
मकई के दाने

फैल रही सौंधी सुगंध घर आँगन चौगाने
ताजे मोती से उजले हैं मकई के दाने
लगा टकटकी देख रहे हैं इनको दादा जी
साफ सुनहरे दिखें न इनमें कोई भी काने

भड़भुज्जा भी समझ रहा
मन में उनके है
बदल न दे वो कहीं निखरते
मकई के दाने

- पूर्णिमा जोशी
१ सितंबर २०२०

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