तुम्हारी चाय का प्याला

 
तुम्हारी चाय का प्याला बड़ा ही याद आता है
कभी जब चाय पीती हूँ तो मन फिर मुस्कुराता है

कभी कड़वी कभी मीठी कभी तीखी लगे मुझको
मगर फिर भी जरा देखो हमें यह खूब भाता है

जरा अदरक मिला लो तुम बनेगी चाय ये आला
सभी है चाहते इसको सभी के मन सुहाता है

सुनो जब घर में हो पार्टी बिना इसके लगे सूनी
न गर ये चाय हो तो फिर समझ में कुछ न आता है

कभी साहित्य के चर्चे कभी घर के बड़े खर्चे
बहाने चाय पीने के अनीता वो बुलाता है

- अनीता मिश्रा 'सिद्धि'
१ जुलाई २०२०

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