कुण्डलियाँ    

 

चाय -पकौड़े, मित्रगण, मुक्त हँसी के संग
गप्प, सौख्य, सन्तोष के, बिखरे ललित सुरंग
बिखरे ललित सुरंग, सुमन हो गए सभी मन
खिले, बिखेरे गन्ध, अट्टहासों का उपवन
चिंतन बैठा मौन , हुए सबके मन ड्यौड़े।
बिखर उठा आनन्द , मिले जब चाय-पकौड़े।




मिला निमंत्रण चाय का, जागी खुशी अपार।
हृदय पूर्णिमा सा खिला, किया तुरत स्वीकार
किया तुरत स्वीकार, साथ में मिलें पकौड़े
आतिथेय अति भव्य, लॉन हैं लम्बे- चौड़े
मन प्रवीण हो गया, कल्पना में आकर्षण
बरसी रस। की धार, चाय का मिला निमंत्रण।

- यायावर
१ जुलाई २०२०

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