जग खड़ा मँझधार में

 

 
समय ने
करवट बदल ली
जग खड़ा मँझधार में

नित्य प्रति विकसित हुए हम
वक्त कब पहचान पाए
समय से आगे निकलने
की चुनौती सिर उठाए
प्रगति पथ
सुनसान है अब
पग थमे घर द्वार में

संक्रमण का 'भय' मुखौटा-
बिन डराने लग गया है
किंतु उससे भी अधिक
संकट क्षुधा का जग गया है
‌‌हम अचंभित
से हुए हैं
आपदा की मार में

जिंदगी की सरपटी रफ्तार
संग भागे पड़े थे
लालसा के आइने सब
नयन के आगे जड़े थे
काल ने
सीटी बजाई
रुक गई गति छार में

- डॉ मंजुलता श्रीवास्तव
१ जून २०२०

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