कोरोना की मार

 

 
कोरोना की मार
अखिल विश्व पर है पड़ी
पर उसका प्रतिकार
है कब जादू की छड़ी

भले साध ले चीन
ध्वंसक कई प्रयोग अब
चाहे हो गमगीन
उससे मानव-जाति सब
शत्रु लिए असि-धार
आए चाहे द्वार तक
संयम की दीवार
किंतु राह में है खड़ी

सात्त्विक ही प्रतिरोध
इसका सबल उपाय जी
शक्ति यही ले शोध
रहता क्यों निरुपाय जी
कौन भला है चित्र
जिसकी रेखाएँ अमर
शाश्वत होती मित्र
कभी न विपदा की घड़ी

विपद! बढा मत हाथ
लेंगे सिर्फ प्रणाम कर
किंतु बनाकर नाथ
नहीं धरेंगे शीश पर
सुरसा-बदन प्रवेश
कर आया लघु रूप कपि
भटक न देश-विदेश
आफत! पथ में क्यों अड़ी

भस्मासुर के पुत्र
खुद अपने सिर हाथ धर
जाता बचकर कुत्र
क्या कोई जग में अमर
कँपा-कँपाकर गात्र
कापालिक-सी बन न अब
रह जाएगी मात्र
अभिलेखों में ही जड़ी

रक्तबीज का रक्त
काली का खप्पर भरे
काली की आरक्त
दाढ़ों में पिस वो मरे
तेरा हर आघात
विहँस झेलते हम रहे
कर मत अति उत्पात
लगा न मुर्दों की झड़ी

- पंकज परिमल
१ जून २०२०

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