मातृभाषा के प्रति


राष्ट्रभाषा हिंदी

सोलह शृंगारों में सजती
जैसे एक बिंदी
भारत मां के भाल पर शोभे
राष्ट्रभाषा हिन्दी

हो पंजाबी या बंगाली
मद्रासी या सिंधी
सबको आती सबको भाती
प्यारी भाषा हिन्दी

कोई भी हो भाषा-भाषी
किसी प्रान्त का वासी
एक सूत्र में सबको पिरोये
जग से न्यारी हिन्दी

बिन पानी के जैसे मछली
रह न पाती जिंदी
कुछ ऐसी ही हम सबको
जीवन देती हिन्दी

रतन चंद 'रत्नेश'
१२ सितंबर २०११

 

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