मातृभाषा के प्रति


विश्व हित वरदान है

भारत भुवन में गूँज है नव चेतना अब जाग री,
नित राष्ट्रहित में रत रहे हिंदी सहित लिपि नागरी।
इस स्नेह-सरिता से प्रवाहित हो रहा अनुराग री,
देने चली है विश्व को निर्मल सुधारस गागरी ।।

जीवन-सुधा के घाट तक इसने बनायी राह है,
संकल्प इसका दूर करना हर ह्रदय की आह है।
सब दीन-दुखियों शोषितों की भी इसे परवाह है,
यह चिरयुवा है और युवकों-सा भरा उत्साह है।।

अभिव्यक्ति की क्षमता संजोये ज्ञान के भण्डार से,
ज्यों लिखी जाती पढ़ी त्यों हैं सरल व्यवहार से।
स्वर-वर्ण इसके उच्चरित अपने सुनिश्चित द्वार से,
अपना रही है विश्व को निज त्यागमय आचार से ।।

भाषा तथा लिपि तत्त्व का इसमें भरा विज्ञान है,
यह सभ्यता के मूल की लगती प्रथम पहचान है।
सदभावना का सर्वथा इसने दिया अवदान है,
श्रुति कंठ मन की मंजु मृदु यह विश्व हित वरदान है।।

तुकाराम वर्मा
१२ सितंबर २०११

 

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