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होली है!!

 

बजे ढोल ढप चंग

बंब बजी, ढोलक बजी, बजे ढोल ढप चंग
फागुन की दस्तक भई, थिरकन लागे अंग

होरी आई मधु भरी, बूढ़े भये जवान
रसिया भये अनंग के, मारक तीर कमान

हुरियारे नाचत फिरत, धरे कामिनी वेष
असर वारुणी, भंग के, भाखा भनत भदेस

गली गली टोली चलीं, उड़त अबीर गुलाल
हुरियारे नाचत चलत, ठुमकि ताल बेताल

ब्रज की होरी के रहे, अजब निराले ढंग
कहीं कहीं महफिल जमीं, कहीं कहीं हुड़दंग

होली-उत्सव नागरी, लोक-पर्व है धूल
ब्रज में होली धूल है, लोक न पाया भूल

नृत्य-गीत, आमोद, रँग, पंकिल धूलि प्रहार
ब्रज को प्रिय रज-धूसरण, जग जानी लठमार

डा. बघेल 
१२ मार्च २०१२

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