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होली है!!

 

ऋतु बसंत की आग

लगा गयी हर डाल पर, ऋतु बसंत की आग
उड़ा धूल की आंधियां, हवा खेलती फाग


टल पाया ना इस बरस, सलहज का इसरार
कुगत कराने को स्वयँ, पहुँचे सासू द्वार


जम कर होली खेलिए, बिछा रंग की सेज
जात धरम ना रंग का, फिर किसलिए गुरेज


पल भर हजरत भूल कर, दुःख, पीड़ा,संताप
जरा नोश फरमाइए, नशा ख़ुशी का आप


सौरभ शेखर
१२ मार्च २०१२

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