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चलो बसंत मनाएँ

आओ चलो बसंत मनाएँ
फागुन में मिलकर हर्षाएँ

माँगें भाव संतरी रवि से
टिसुआ से ले रंग बनाएँ

कोमल मन समीर से लेके
दूर गगन तक उड़के आएँ

पंचम स्वर कोयल से सीखें
सखियों के संग मिलकर गाएँ

सौरभ को साँसों में भर कर
मनसिज हो घर को महकाएँ

बैर-भाव को छोड़ें दिल से
मानव बन के प्रीत जगाएँ

चन्दा से सीखें शीतलता
"कल्प" चलो अपनों को मनाएँ

- कल्पना मनोरमा
१५ मार्च २०१६

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