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 रंगों के बादल

आँखों में रंगों के बादल हैं
अबीर बन बह चला मन कहीं दूर
उड़ने लगे फूल हवाओं में
मन टेसू हुआ जाता है.

सपने हैं कि धुआँ सा है कुछ
कलियाँ चहकी हैं गुल दावरी की
दिल की हर डार पर
गुलमोहरी रंग फैल गया
मन अमोघ नंदन वन हुआ जाता है.

ग़ज़ल कहती घूम रही हवा है
कृष्ण राधा से बावरे ग्वाल बाल लगे
समझे खुद को हीर राँझा या फरहाद
कुछ शायरी करते से लगे

बरस गए हैं मेरी आँखों में
हज़ारों सुरमई सपने
महकने लगे हैं टेसू कुछ नए कुछ पुराने
मन हो चला सुर्ख गुलाब सा.

सपनों की कलियाँ हैं हर मन में
दिल की हर डाल पर
फूट रही हैं नव पंखुड़ियाँ
और ये उपवन
नन्दन वन सा हुआ जाता है.

कृष्ण राधिका भी वृज में
झूम रहे
मादक सा तन और जज्बाती है मन
भाँग भी घुट रही, अपूर्व है स्वाद
रूह को भी गुलदावरी किया जाता है.

बेला चमेली इत्र सी सुगंध लिए टहल रहे
बरसी बदली है फिज़ा में
रँग गई चुनरी राधा की
ये प्रेम की बारिश है या फागुन की बयार
या फिर होली का त्योहार?

- मंजुल भटनागर 
१ मार्च २०१९

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