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राग द्वेष के मध्य

राग द्वेष के मध्य मौन हैं
ढोलक झाँझ मंजीरे

वैमनस्य की भीति हृदय हर
उत्स नेह के सूखे
संवादी स्वर सारे गूँगे
प्रीति व्याकरण रूखे

साधो इस होली पर कैसी
मलिन बयार बही रे

नानक की गुरुवाणी सिसकी
सिसकीं ग़ज़लें मीर
गुमसुम दोहे देख नीति के
मगहर रोये कबीर

सिर्फ़ प्रेम के दूजी भाषा
किसकी क़लम कही रे

ढोल मृदंग झाँझ डफ ने की
इस फागुन हड़ताल
रंगे जमाल कौन विधि माधव
करे गुलाल मलाल

रंग अबीर जहाँ थे कल क्यों
आयुध आज जखीरे

- अनामिका सिंह अना
१ मार्च २०२०

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