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ज्योति पर्व
संकलन


क्योंकि आज दिवाली है

क्योंकि आज दिवाली है,
मैंने भी
एक दिया जलाया है।

अपने भूकंप और
बाढ़ जैसी प्राकृतिक और
दंगे फसाद जैसी
मानवीय आपदाओं को झेल
खंडहर हुए उजड़े मकान के
उखड़े-उखड़े आँगन में
भूख, बेकारी और
लाचारी के बावजूद,
अपने पडौसी से उधार लेकर,
एक दिया जलाया है,
क्योंकि आज दिवाली है।

रोशनी तो मुझे
सड़क पर लगे सरकारी
लैंपपोस्ट से भी
मिल जाती है।
यह दीपक तो
आशा दीप है जो
आशा की किरणें फैलाता है।

मैं हर वर्ष
इस आशा में लगाता हूँ कि
कभी न कभी
किसी न किसी दिवाली पर तो
हज़ारो वर्षों के वनवास के बाद
राम ज़रूर आएँगे और
एक बार फिर इस देश में
रामराज्य आएगा।

सत्येश भंडारी

  

 तमसो मा ज्योतिर्गमय

जल मेरे दीप अभी और जल
बुझ रही बाती कुछ और जल

अपने उर का नेह पिला
तूने जो लौ लगाई थी
अंतस की चिनगारी ले वह
अँधियारे से लड़ आई थी
बुझ न जाए यों तिल-तिल
कुछ और उर में नेह भर

नेह का यह कर्ज़ तुझ पे
जल मेरे दीप और जल
बादल और सिंधु-सा
कर्ता और कर्म-सा
साथ है यह उम्र का
हार कर पीछे न हट

शब्दों के अभाव में
अर्थ बन जा
सूरज सा-
हर राह पे चमक

अमावस की है रात काली
जल मेरे दीप और जल

तेरे पथ में कर्म योगी
हारने का विकल्प नहीं
डूबे ना वो आख़िरी किरन
डूबती साँसों से लड़

जल मेरे दीप
सुबह होने तक जल

शैल अग्रवाल

 

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