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चार छोटी कविताएँ

 

 

 

विश्वास

अम्मा पनिहायी आँख,
खुरदुरे हाथ, टूटती राग लिए
हँस देतीं उत्सव-सा जब,
ईश्वर सब जगह है
विश्वास हो जाता तब

अम्मा

अम्मा,
थककर बैठी साँझ
उसकी मुस्कान एक बाती
जो हर अँधियारे-बिना तेल
जल जाती
अपने स्वारथ निथार
सबके साथ सन जातीI

सुख

अम्मा,
जितना तू रोई है
उतना मैं रोऊँगा
तुम्हारे लिए
सुख बोऊँगा

हुनर

अम्मा सब दुखों को
सान देती
आटे के साथ
मुस्कराहट उगाती
चूल्हे की आग में
देकर रोटियों को मीठी थाप

-अमरपाल सिंह
३० सितंबर २०१३

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