अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अम्मा तेरा नाम

 

 

 
 
दुनिया पर भगवान की, बरसी कृपा अपार।
घर-घर माँ के रूप में, बाँट रहा वह प्यार।।

त्याग, समर्पण ही रहा, जीवन का आधार।
घर, आँगन, संतान ही, है माँ का संसार।।

दुनिया के हर पुरुष को, नारी मिलना भाग्य।
औ हर नारी के लिये, माँ होना सौभाग्य।।

माँ अपनी संतान को, देती नेह समान।
चाहे वो शैतान हो, या हो संत महान।।

जाने कब दिन ढल गया, आ पहुँची फिर रात।
कामकाज में रह गयी, मन में मन की बात।।

चाहे वो पुचकार दें, चाहे दें फटकार।
अम्मा के व्यवहार से, छलके निश्छल प्यार।।

मन में जब भी आ गया, अम्मा तेरा नाम।
ठीक समय पर हो गये, मेरे सारे काम।।

-सुबोध श्रीवास्तव
३० सितंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter