अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

मेरा भारत 
 विश्वजाल पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन 

 
 
मेरी माटी मेरा देश
 

मुझमें
अपनापन बोते हैं
मेरी माटी मेरा देश

हर घास दूब सी है लगती
हर पवन लगे मलयानिल सी
हर रोज़ साथ जगते
सोते हैं
मेरी माटी मेरा देश

हर शहर लगे दिल्ली काशी
हर जन लगता भारतवासी
हर समय साथ रुकते
चलते है
मेरी माटी मेरा देश

हर सागर हिंद महासागर
हर पानी गंगाजल हर हर
हर समय साथ झरते
बहते है
मेरी माटी मेरा देश

हर गीत ऋचा सा बज उठता
मन में केका पीहू जगता
हर समय साथ गुन-गुन
करते हैं
मेरी माटी मेरा देश

हर मौसम गरम और ठंडा
मेरा सूरज मेरा चंदा
हर समय साथ उगते
ढलते हैं
मेरी माटी मेरा देश

- पूर्णिमा वर्मन
११ अगस्त २०१४


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter