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नव्य पथ नवदृष्टि
     

 





 

 


 




 


नव्य पथ नव-दृष्टि कोई
चाहिए

स्वार्थ गढ़ते हैं कुटिल राजाज्ञायें
चलन में फिर हैं शकुनि की छल-कलायें
आचरण
उत्कृष्ट कोई
चाहिए

मोह के अंधे विरासत लिख रहे हैं
लाक्षागृह पर धुएं फिर दिख रहे हैं
इक विदुर सी
दृष्टि कोई
चाहिए

आ खड़े संबंध रण में सामने हैं
तीर अर्जुन के हुये फिर अनमने हैं
अब समय को
कृष्ण कोई
चाहिए

– कृष्ण नन्दन मौर्य
१८ अगस्त २०१४

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