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नये साल क्या लाओगे
 
आज समय ये पूछ रहा है
नये साल क्या लाओगे
या यों ही बस रीते खीजे
भागे - दौड़े आओगे

समय डाल पर रोते पंछी
ज़ख्मी चीख पुकारें हैं
भूखे सपने लग कतार में
अखियों को दुत्कारें हैं

मरहम पट्टी और दवाई
बनकर मन सहलाओगे
या यों ही बस रीते खीजे
भागे - दौड़े आओगे

अभी सपन की आँखें गीली
अधर नहीं गा पाये हैं
तुतलाते अब बोल हुए हैं
पाँव बड़े मुरझाये हैं

पीड़ा के मन-तन को देखो
क्या अबके बहलाओगे
या यों ही बस रीते खीजे
भागे - दौड़े आओगे

सुनो ज़रा आलाप लगाए
गाँव गली में हो आना
बुझे हुए चूल्हे की हंडिया
को दे आना कुछ दाना

द्वार-दुछत्ती हँसी दुबकती
उससे अब मिलवाओगे
या यों ही बस रीते खीजे
भागे - दौड़े आओगे

- गीता पंडित
१ जनवरी २०१७

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