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जाते जाते साल
 
जोड़ गया
कुछ घटा गया
कुछ बाकी गया निकाल
छोड़ गया कितना कुछ पीछे
जाते-जाते साल।

सुधियों की पोटली धर गया
चुपके से सिरहाने
धुधली तस्वीरों में कितने
चेहरे नये पुराने

बना गया
फिर नयी भूमिका
आने वाले कल की
सँझबाती का दीप गया
तुलसी-चौरे पर बाल।

निपटा कर कुछ गया फाइलें
लम्बित इच्छाओं की
लाँघ गया बाधायें कितनी
कठिन परीक्षाओं की

छिपा गया
मन के पन्नों में
सपनों की कुछ कलियाँ
गया देहरी पर प्रश्नों के
अक्षत नये उछाल।

बजने लगी घंटियाँ सुमधुर
गूँज उठे जयकारे
नये साल की तारीखों की
सजने लगी कतारें

हल्दी-कुमकुम
रोली-चन्दन
किरणें लगीं सजाने
रचने लगी शगुन का टीका
ऊषा जग के भाल

- मधु शुक्ला
१ जनवरी २०१७

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