अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नये साल में रामावतिया
 
नये साल में रामावतिया
सपने नये बुने

गया अकारथ साल पुराना
लड़का है खाली
लगते हैं विकास के वादे
उसको सब जाली

नये साल में हे ईश्वर! वह
सिर अपना न धुने

राजा साहेब मुलुक के खातिर
जार जार रोए
सेठ नहीं मटरू को साहेब
पटक पटक धोए

अब शायद राजा मटरू के
मन की बात सुने

हफ़्तों लाइन लगा कल्लू पर
उफ़ न किया उसने
अच्छे दिन की हर आहट पर
कान दिया उसने

नये साल में कहीं न उसके
फूल जायँ नथुने

- डॉ. प्रदीप शुक्ल      
१ जनवरी २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter