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नया साल है आया
 
एक सवेरा बोला जागो
नया साल है आया।
आशाओं की भोर-किरन ने
साँकल को खटकाया।

आसमान के होठों पर
मुस्कान दिखी है तेरी
अरे! क्षितिज पर सूरज ने
पहचान लिखी है तेरी

दिन के माथे पर चंदन का
तूने तिलक लगाया।

युग का काला घना अँधेरा
निकल गया हर घर से
और नीलगिरि ऊँचा शोषक
काँप रहा है डर से

यह कैसी सर्जिकल हवा का-
अंधड़ लायी माया।

निर्धन के दिन और महीने
हँसे हुए लम्बे
कैलेंडर वाले महलों के
डोल रहे खम्भे

दादा ने सुखिया दुखिया का
किस्सा पुनः सुनाया।

- उमा प्रसाद लोधी 
१ जनवरी २०१७

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