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नव वर्ष अभिनंदन
2007

  नया वर्ष द्वार पर           

 

फिर नया वर्ष आकर खड़ा द्वार पर
फिर अपेक्षित है शुभकामना मैं करूँ
माँग कर ईश से रंग आशीष के
आपके पंथ की अल्पना मैं भरूँ

फिर दिवास्वप्न के फूल गुलदान में
भर रखूँ आपकी भोर की मेज पर
न हो बाती नहीं हो भले तेल भी
कक्ष में दीप पर आपके मैं धरूँ

फिर ये आशा करूँ जो है विधि का लिखा
एक शुभकामना से बदलने लगे
खंडहरों-सी पड़ी जो हुई ज़िंदगी
ताजमहली इमारत में ढलने लगे

तार से वस्त्र के जो बिखरते हुए
तागे हैं एक क्रम में बँधे वे सभी

झाड़ियों में करीलों की अटका दिवस
मोरपंखी बने और महकने लगे

गर ये संभव है तो मैं हर इक कामना
जो किताबों में मिलती पूर्ण कर रहा
कल्पना के क्षितिज पर उमड़ती हुई
रोशनी में नया रंग हूँ भर रहा

आपको ज़िंदगी का अभीप्सित मिले
आपने जिसका देखा कभी स्वप्न हो
आपकी राह उन मोतियों से सजे
भोर की दूब पर जो गगन धर रहा।

राकेश खंडेलवाल

 

सुस्वागतम

सूर्योदय से लेकर आसमान की लालिमा
लगाता हूँ तिलक नव वर्ष के माथे पर
रखता हूँ उस पर अक्षत श्वेत शांति का
और बुलाता हूँ उसे स्वागत के साथ
आओ पधारो म्हारी धरा पर
सुस्वागतम!
देखो इस बार आना तो छोड़ कर आना
मानवता का संहार
राजनीति की बिसात पर
आणविक विनाश के खतरे को
आओ स्वागत है तुम्हारा
कुछ इस तरह आओ कि
हृदय में तर्क की जगह भावना पनपे
हो सके तो विकास की बयार को
मौलिक
भूख के साथ ले कर आओ जिसमें
आदमी सामानों के मोह से बाहर हो
प्यार और अहसास के लिए जीना सीखे
आओ नव वर्ष तुम्हारी राह देख रहा है
हर गली हर कूचा
कुछ इस तरह आओ
कि लगे नव वर्ष केवल कार्ड और
एस.एम.एस. मैसेज के लिए नहीं आया है
यह आया है
जन जन के हृदय में रोशनी फैलाने
कि तुम्हारा स्वागत कर सके
वह गरीब जनता भी जो तरसती है
उस अन्न के एक-एक दाने के लिए
जिसे अमीर अघाए लोग
अपनी प्लेट में जूठन की तरह छोड़ देते हैं
हे नव वर्ष आओ इस बार यह कहते हुए
कि आज प्रश्न देश की सीमाओं से उठ कर
धरा की सीमाओं तक पहुँच गए हैं
हम चाँद और मंगल पर ज़रूर पहुँचे हैं
परंतु नहीं पहुँच पाए हैं
अपने अपनों के दिल तक
कुछ ऐसी दवा लाओ कि
आदमी आदमी की इंसानियत पर
फिर भरोसा करना सीख सके

नव वर्ष आओ कि
तुम्हारा तहे दिल से स्वागत है पर
इस बार आना तो बस पार्टी उत्सव और बधाई संदेश भर में मत खो जाना
आना आम आदमी के दिल में
उमंग बन कर, जीवन की तरंग बन कर
सागर का गीत बन कर
वसुधा का मीत बन कर
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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