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नव वर्ष अभिनंदन
2007

     वर्ष की पहली किरन

 

उग रहा सूरज नया तेरे लिए
बाँटती खुशबू हवा तेरे लिए

फूटती नव वर्ष की पहली किरण
खिलखिलाई लो धरा तेरे लिए

साधना संकल्प के हे दृढ़व्रती
भावना हो उर्वरा तेरे लिए

काम्य तट पहुँचे तुम्हारा कारवाँ
मौज में सागर हुआ तेरे लिए

मोद मंगल सुख सुयश तेरा बढ़े
यह सतत शुभकामना तेरे लिए

नीलमेंदु सागर

 

नव अभिनंदन

गए वर्ष की कगार पर खड़ी
राह तकती गुंजयमान हैं
दसों दिशाएँ नव अभिनंदन को
मानव संस्कृति के आयाम
अब रूप बदलेंगे
सहस्त्रदल कमल राह में बिछेंगे
शीशवंदन को वर्तमान प्रतिबिंबित है
आनेवाले कल के चेहरे में
आतंकित न हो
कलिकाल के भयावह चेहरे से
अकथनीय अनुभवों को संजो ले
शब्दों में न ढाल
कहीं अपार्थिव क्षणों में
शब्दों को पंख न लग जाए।

कल आकाश की
नीलाभ अलिप्तता को छोड़कर
अभ्युत्थान होगा
नव सूर्य की किरणों का धरा पर
उद्वेलित समय की कालिमा को हटा
प्रकाश छाएगा
नूतन वर्ष हृदय में हर्षोल्लास के फूल खिलाएगा
प्रत्येक युग पुरुष का ललाट
होगा दैदीप्यमान
शुभ लाभ कल्याण के
पुण्य मंत्रों का होगा उच्चारण
निर्मल निर्झरणी बहा लाएगी
पुन: पावन इतिहास
शुभ कामनाओं से परिपूर्ण होगा
मानव प्रयास

वीणा विज 'उदित'

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