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नव वर्ष अभिनंदन

नवीन चेतना

         

आ गया नवीन वर्ष का पुनीत पर्व
पुनि जगी प्रयत वसुंधरा लिए नवीन चेतना।।

हुई विलीन गत युगीन व्याधियाँ
मलीन हो गई विगत विडंबना।
जगी समष्टि रूप ले नवाब्द का
उदित हुई नवल उषा निरंजना।
छा गया नवीन हर्षमय मधुर प्रगीत
पुनि सजग हुई परंपरा लिए नवीन प्रेरणा।।

प्रमाद कह उठा कि जब टलो-टलो
अशौच ईर्ष्यादि भी ढलो-ढलो।
तजो समस्त भेदभाव विकृतियाँ
मनुष्य शील पंथ पर चलो-चलो।
बज उठा विकास राग कर्म वीण पर पुन:
हुआ उदित नवल प्रभात ले नवीन कल्पना।।

विनष्ट हुई शक्ति अंधकार की
प्रदीप्त हुई ज्योति मधुर प्यार की।
सबल हुआ है विश्व भ्रातृ भाव शुचि
करो न वार्ता जगत संहार की।
मनुष्य के संग मनुष्य चल सके पुन:
पुलक-पुलक करो नवीन पंथ की समस्त जन गवेषणा।।

प्रो. हरिशंकर आदेश


स्रोत : आकाश गंगा काव्य संग्रह

  

नया वर्ष शुभ हो

सिहर-सिहर कर शिशिर कह रहा'
 नया वर्ष शुभ हो

दस्तक देता समय द्वार पर
जाता पिछला वर्ष हार कर
कहता है पल-पल पुकार कर
नया वर्ष शुभ हो

खुले रहें वातायन मति के
हों अवरुद्ध न पाँव प्रगति के
होंवें सहृदय भाव नियति के
नव प्रकर्ष शुभ हो।।

प्रकृति न अधिक प्रकोप दिखाए
तत्व न कोई प्रलय मचाए
मिलें सृजन को नई दिशाएँ
नवोत्कर्ष शुभ हो।।

उजड़े गाँव पुन: बस जाएँ
सहमे पाँव पुन: पथ पाएँ
बिछुड़े मिलें अभीप्सित पाएँ
स्वजन दर्श शुभ हो।।

हो आरोग्य, धन, धान्य आए
सुख समृद्धि नव रंग दिखाए
सपने सुखद सत्य हो जाएँ
प्रिय स्पर्श शुभ हो।।

सिंधु नहीं लांघे मर्यादा
जीवन को न सताए बाधा
रह जाए सत्कार्य न आधा
नवल हर्ष शुभ हो।।

हर अंतर से दूर भ्रांति हो
हर आनन पर नव्य कांति हो
अब न हताहत विश्वशांति हो
नव संघर्ष शुभ हो

महाकवि प्रो. हरिशंकर आदेश

 

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