अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नए साल में
 

नए साल में
नई सुबह ले
ओ मेरे दिनमान निकलना !
अगर राह में
मिले बनारस
खाकर मघई पान निकलना

संगम पर
आने से पहले
मेलजोल की धारा पढ़ना
अनगढ़
पत्थर, छेनी लेकर
अकबर, पन्त, निराला गढ़ना
हर महफिल में
मधुशाला की
लिए सुरीली तान निकलना

सबकी किस्मत
रहे दही गुड़
नहीं किसी की खोटी लाना
बस्ती, गाँव -
शहर के सारे
मजलूमों को रोटी लाना
फिर-फिर
राहू ग्रहण लाएगा
साथ लिए किरपान निकलना

बौर आम के -
बैल काम के
पपिहा, मैना, कोयल लाना
सरसों खातिर
पियरी-चुनरी
गेहूँ पर हो सुग्गा-दाना
कुशल-क्षेम
हो सबके घर में
रथ पर ले वरदान निकलना

अबकी टेढ़ी
और बदचलन
राजनीति के ढंग बदलना
घर के सब
खिड़की, दरवाजे
धूमिल परदे, रंग बदलना
धरती पर है
सघन कुहासा
होकर के बलवान निकलना

-जयकृष्णराय तुषार
३१ दिसंबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter