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खुशियाँ लाना नए बरस
 

ठण्ड बढ़ायें, घने कोहरे
संग न, आना नये बरस,
हाथों से चेहरे तक, सबके
खुशियाँ लाना नये बरस

बच्चों को भी मिलें मुरादें
और युवा मन को सपने,
मुट्ठी भर आकाश दिलाना
पाँव चले धरती नपने.
बन्द हुए, घर के कमरों में
धूप भी लाना नये बरस !

बेकारी को, काम दिलाना
चेहरे-चेहरे सुख-छाया,
देहरी-देहरी, उजियारा हो
आँगन-आँगन मनचाहा.
छप्पर-छान, कोठी-बँगलों के
मन भाना नये बरस !

घर की थाली, भरी-भरी हो
नहीं कमी हो कुछ ऐसी,
खुशहाली हो, तंगदिली की
घर में हो ऐसी तैसी.
जिनसे अब तक, त्रसित रहे सब
मुक्ति दिलाना नये बरस !

--डॉ. मुकेश श्रीवास्तव अनुरागी
३१ दिसंबर २०१२

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