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एक नया पल आए
 
एक नया पल आए अइसन
आपन गाँव शहरिया में

अहसासों की
चास न उजड़े लोभ कपट की लाही से,
अब कोई इतिहास रचे ना द्वेष दमन की स्याही से,
सुख दुख बाँटे हिलमिल के
सब कोई एक चदरिया में.

रिश्तों के
लिबास पे गहरी चाहत की फुलकारी हो
अपनेपन की बास लिए हर कुनबे की फुलवारी हो
बचपन लोटे हरदम बाबा-
दाई की अँकवरिया में

पंचम के सुर
गूँज उठे बूढ़े बरगद की डालों में
उलफत के दस्तूर चले सुनसान पड़ी चौपालों में
चुनमुन चिड़ियाँ चोंच लड़ाए
आके रोज अटरिया में

- शंभुशरण मंडल
३० दिसंबर २०१३

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