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खुशियों के परिधान
 
जाते-जाते साल में, दिल का ये अरमान
नया वर्ष लाता रहे, खुशियों के परिधान।

नये वर्ष तुम साथ में, लाना यह उपहार
भूखे को भोजन मिले, बेघर को घर-बार।

गया दिसंबर दे गया, तोहफे में नववर्ष
बीती बातें भूलकर, चलो मनायें हर्ष।

सूरज निकला खिल उठी, नूतन धवल प्रभात
नये वर्ष में लग रही, नयी-नयी हर बात।

हर दिन ही होती रहे, खुशियों की बरसात
लाना नूतन वर्ष में, सिर्फ यही सौगात।

दिशा-दिशा में घुल रहा, एक नया उल्लास
अंतस में जगने लगी, पिया मिलन की आस।

सूरज कोहरे में छिपा, फिर भी खिली उजास
मौसम पर भारी रहा, उत्सव का उल्लास।

- सुबोध श्रीवास्तव
५ जनवरी २०१५

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