अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

आई प्रभाती
 
वर्ष नूतन नौनिहालों को लिए
आई प्रभाती!

टाँग कर बस्ता सँवरती, चोटियाँ दो बाँध लीं हैं
देखिये नन्हीं सी परियाँ, पाठशाला को चलीं हैं
तितलियों की रंगकारी सी सुबह
कितनी सुहाती!

रंग नूतन स्वप्न नूतन, देखते हैं नैन प्यारे
दें उचित पथ के प्रदर्शन, लाड़ के संग दें सहारे
खुल चले सम्भावनाओं की उडानें
गुनगुनाती!

आ गयीं नव कोंपलें, बरगद बहुत खुश हो रहा है
झूमता गाता हुआ, विस्तारणा में खो रहा है
अंक में भरकर समेटे गर्व से
अपनी ही थाती!

- गीतिका 'वेदिका'
२९ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter