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एक सपना
 
आहटें बदले समय की सुन रहा है मन
एक सपना फिर नयन में
बुन रहा है मन

धर गया
कोई सिरहाने जादुई पुड़िया
फिर लगी तिनके जुटाने आस की चिड़िया
भावनाओं में हुयी कुछ सुगबुगाहट सी
गीत मौसम का नया फिर
गुन रहा है मन

गंध चिर-
परिचित लगी घुलने हवाओं में
बिम्ब सुधियों के कई उभरे दिशाओं में
बदलियाँ भ्रम की हटाकर धूप के आँगन
सीलते रिश्ते रुई सा
धुन रहा है मन

पलटती है
पृष्ठ रह-रह झील की लहरें
इन अबोले अक्षरों के अर्थ है गहरे
जिन्दगी की रेत से अनमोल मोती सा
पल मधुर अहसास का फिर
चुन रहा है मन

- मधु शुक्ला
२९ दिसंबर २०१४

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