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नये वर्ष तू बता
 
नये वर्ष तू बता किस तरह
करूँ तेरी अगवानी!

जाने कैसे बदल रहा है
मौसम अपना रंग
खड़ी फसल पर ओलों ने फिर
किया रंग में भंग
बेमौसम खेतों में छहरा
पानी ही पानी

देह बुजुर्गों की सिकुड़ी है
ओढ़े पड़े रजाई
सूरज की हड़ताल चल रही
पड़ता नहीं दिखाई
सर-सर बहती हवा कर रही
है तन से मनमानी

जेब गरम है जिनकी, पहुँचे
शिमला और मनाली
रैन बसेरे वालों का क्या
जिनकी जेबें खाली
शोर जश्न का दबा रहा है
मजबूरों की वाणी।

- ओमप्रकाश तिवारी
२९ दिसंबर २०१४

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