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नये साल का सूरज
 
फूलों से बच्चे हैं
इनको खिलने दो
नये साल का सूरज
नभ में उगने दो

पट्टी बँधी हुई है
नफरत की आँखों पर
बड़ा गर्व है तुम्हें
घिनौनी करतूतों पर
दुनिया में थोड़ी
मनुष्यता रहने दो

तूफाँ और सुनामी
जैसे कितने खतरे
तुमने तो क्या कहें
कान इनके भी कतरे
जीवन है अनमोल
ज़िन्दगी चलने दो

घाव लिये सीने पर
जब मानवता डोले
हैप्पी न्यू ईयर फिर
कोई कैसे बोले
रहने दो अबकी ये
उत्सव रहने दो

– रविशंकर मिश्र “रवि”
२९ दिसंबर २०१४

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