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उड़ना हो तो

 
उड़ना हो तो
डोर हौसलों की बाँधो
बिन डोरी के कहाँ पतंगे उड़ती हैं?

दाँव पेंच की लंगड़ी टंगड़ी मत मारो
जीत रहे हो तो मौके पर मत हारो
कटे-कटे से कहाँ तलक तुम जाओगे
जीवन को आपा- धापी में मत डारो
जुड़ना हो तो
बिखरी कड़ियों को पकड़ो
बिन कड़ियों के कहाँ उमंगें जुड़ती हैं ?

चिंदी - चिंदी सी चीजों का जुड़ना है
नए बीज के लिए मृदा का गुड़ना है
मुड़-मुड़ के क्या देख रहे हो बीते को
हाथ मसलना पछताना व कुढ़ना है
मुड़ना हो
माध्यम में तो आ प्यारे!
बिन माध्यम के कहाँ तरंगे मुड़ती हैं?

- अशोक शर्मा 'कटेठिया'
१ फरवरी २०२१

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