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       डोर से टूटी पतंगें

 
ऋतु के बदले ढंग
बसंत में उड़ी पतंग

साथ ले चली रंग धरा के
डोरी बैठ पतंग
अंबर बिखरे रंग बसंती
व्योम धरिणि बहुरंग
हवा में उठे तरंग

उर वीणा के तंत्र बज रहे
सतरँगी मन सपने
मेघ तैरते खगवृंदों में
और पतंगें थिरकें
नचाती अंग अंग

काया इनकी है बहुरंगी
चौकोना आकार
साहस की पर कमी नहीं
नापे नभ विस्तार
अनुपम शौर्य प्रसंग

तक तक ऊँची पेंग पतंगी
पुष्पित होता प्यार
छतपर डोर संग में थामे
प्रेमी रहे निहार
तन मन भरी उमंग

- ओम प्रकाश नौटियाल
१ फरवरी २०२१

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