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       सारी पतंगें

 
हवा से संघर्ष करती
जा रही सारी पतंगें
क्या पता कितनी ऊँचाई से
गिरें प्यारी पतंगें

था अनंत आकाश जिसका
आदि था न अंत था
डोर की सीमा थी अपनी
छोर का भी अंत था

उड़ रही पर दूसरों के
हाथ मे सारी पतंगें

कौन किसको है उड़ाता
क्या पता किस ओर से
एक डर है हर किसी में
कुछ करीबी चोर से
.
हर कदम पर लड़खड़ाती
प्यास की मारी पतंगें
.
कह नही सकती व्यथाएँ
यातनाओं का कहर
एक अबला की तरह बस
मौन का पीती ज़हर
.
काटती है किस तरह से
राह बेचारी पतंगें
.
- उमेश मौर्य
१ फरवरी २०२१

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