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       यह जीवन

 
उड़ती पतंग-सा यह जीवन

थामे हैं डोर अदृश्य हाथ
है निकट नहीं पर सदा साथ
मंझा अदृश्य चरखी अदृश्य
लेकिन सपनों में नील गगन

क्यों कोई पेंच लड़ाता है?
किसका मंझा कट जाता है?
कब कौन गिरे नभ से भू पर?
उत्तर न कहीं हैं मात्र प्रश्न

जाना है जाने कहाँ तलक
अज्ञात लक्ष्य यात्रा अनथक
ये लोभ-मोह ये राग-द्वेष
ये जीत-हार सब भ्रम-बन्धन

खुलने देता कब छिपा राज
छलिया है बड़ा पतंगबाज
रखं देता है हथेलियों पर
थोड़े आँसू थोड़े चुम्बन

- यायावर
१ फरवरी २०२१

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