अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

होली

 

  तनमन सराबोर है रंग से
धूम मचाती आई होली
वन उपवन में टेसू फूले
सरसों-सी लहराई होली

महक उठी फिर से अमराई
दिन मदमस्त रात अलसाई
सात स्वरों में कोयल बोली
मेरे संग भी खेलो होली

परदेसी घर लौट के आए
गोरी का मन बहका जाए
हौले से घूँघट पट खोली
अब खेलूँगी मैं भी होली

रंग गुलाल अबीर उड़ाती
झांझ मजीरा ढोल बजाती
फगुआ गाती आई टोली
मिल कर सब खेलेंगे होली

देवर मारे भर पिचकारी
कोरी चूनर भी रंग डारी
भिगो दिया लहंगा और चोली
इसीलिए तो आई होली

कहे 'आज़मी' प्रियतन आवो
होली के रंग में रंग जावो
अब ना खेलें आँख मिचौली
आवो हम भी खेलें होली

- सावित्री तिवारी आज़मी

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter