पिता की तस्वीर
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन

 

जो पेड़ मेरे पिता ने कभी लगाया था

जो पेड़, मेरे पिता ने कभी लगाया था
पिता के बाद पिता-सा ही उसका साया था
ये दर्पनों के अलावा न कोई देख सका
स्वयं सँवरते हुए रूप कब लजाया था
गगन है मन में मेरे, ये गगन को क्या मालूम
ये प्रश्न, झील की आँखों में झिलमिलाया था
तुम्हारा गीत, तुम्हारा नहीं रहा अब तो
तुम्हारा गीत, करोड़ों स्वरों ने गाया था
मुझे वो लगने लगा अंगरक्षकों की तरह
जो हर समय मेरी परछाईं में समाया था
इसीलिए मैं गुलाबों की कद्र करता हूँ
गुलाब, काँटों में घिर कर भी मुस्कुराया था

जहीर कुरैशी
९ जून २००८


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter