पिता की तस्वीर
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन

 

क्षणिकाएँ

पिता के लिए

यहीं कहीं बिखरी है
राख तुम्हारी
यहीं कहीं से
वह चिनगारी
मेरे भीतर
समा गई है

- प्रेम शंकर शुक्ल

बाबू जी

बाबू जी
खेत में खड़ी फसल हैं
हम उन्हें
काटते हैं
कूटते हैं
फिर
उन्हें बेंच के
अपना-अपना हिस्सा रख लेते हैं

- मनीष वंदेमातरम


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter