अपना प्यारा रघुनंदन

 
भारत की माटी ढूँढ रही
अपना प्यारा रघुनंदन

भारी भरकम-से बस्तों में
बच्चों की किलकारी खोई
होड़ बढ़ी आगे बढ़ने की
लोरी भी थक कर सोई

महक उठे मन का आँगन
बिखरा दो केसर चंदन

वर्जनाओं की झूठी बेड़ी
ललनाएँ अब तोड़ रहीं
नहीं अहिल्या होना है अब
रेख नियति की मोड़ रहीं

विकल हुई मधुबन की बेली
राह तके सिय का वंदन

हर बालक में राम छुपे हों
हर बाला में सीता
चरण पादुका पूजें भाई
बहनें हों मन प्रीता

नवमी में हम करें राम का
धरती पर अभिनंदन

--ऋता शेखर 'मधु' 
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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