विनती

 
  कमल-नयन कीजै कृपा, सब जन रहें निरोग
मंगल हो संसार में, मिटे आपदा-योग

राम अवध में अवतरित, दशरथ-सुत सुचरित्र
श्रीगुरुदेव वशिष्ठ से, विद्या पायी, मित्र!

जनक राज-दरबार में, खींच शिव-धनुष-चाप
सिया-स्वयंबर में बने, राम सिया-वर आप

अवध पधारे वर-वधू, लीला का ही अंग
राम-सिया बनवास को, चले लखन भी संग

रावण ने सीता-हरण, किया कुटिल धर वेश
राम, सिया को ढूँढते, पहुँचे हनुमत-देश

सीता माँ को खोजकर, दिया राम-संदेश
सोने की लंका जला लौटे अपने देश

साथ विभीषण को लिया हुआ युद्ध का घोष
शक्ति पूजकर राम ने, दूर किये सब दोष

सेतु बने पत्थर सभी, राम-नाम ले ओट
वानर-सेना युद्ध कर, करे शत्रु पर चोट

लक्ष्मण हित संजीवनी, ले आये बजरंग
राम व रावण युद्ध में, विजय सत्य के संग

पूरे चौदह वर्ष का, बीता यों वनवास
लौटे राम अवधपुरी, चहुँदिस हुआ उजास

- परमजीत कौर 'रीत'
१ अप्रैल २०२०

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