मुदित अयोध्या धाम

 
  मुदित अयोध्या धाम है, आह्लादित संसार
प्रगट भये प्रभु राम जी, सुख का हुआ प्रसार

सच पूछो तो राम का, कहाँ नहीं है धाम
हमने ही खुद दे दिया, मंदिर-मस्जिद नाम

कहीं गूँजतीं आयतें ,कहीं राम गुणगान
संगम है सौहार्द का, अपना हिंदुस्तान

पुरुषोत्तम श्रीराम की, लीला अपरम्पार
केवट की नौका चढ़े, जाना है उस पार

पितृ वचन निर्वाह को, स्वीकारा वनवास
संग तृप्त होती रही, मानवता की आस

पत्थर पर भी लिख दिया, जहाँ राम का नाम
वो पत्थर करने लगा, राम नाम के काम

लंकापति के हश्र से, निकला यह परिणाम
अनाचार के नाश को, खुद आते हैं राम

चलो उतारें आरती, कर लें उन्हें प्रणाम
पूरा कर वनवास को, घर लौटे हैं राम

कर ली पूजा आपने, घूमे चारों धाम
भक्ति करें बिन स्वार्थ के, तभी मिलेंगे राम॥

कहाँ याद आते कभी, वैसे सबको राम
जपते हैं माला तभी, जब पड़ता है काम

- सुबोध श्रीवास्तव
१ अप्रैल २०२०

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