आवर्तन

 
  तल भूतल के मध्य काल का आवर्तन
रहा दिखाई देता युग का
परिवर्तन

सिंधु समय के साथ सदा बहता आया
अपनी सीमाओं के ऊपर भी आया
टापू मध्य विचरता लहरों
का नर्तन

जोड़ तोड़ सीखी सदियों ने सदियों तक
संकेतों के चरण चिह्न जीवित अब तक
जल की निर्मलता का ऐसा
संकर्षण

राम नाम की शिला तैरती जल धारा
स्वयं प्रमाण प्रमाणित होता जग हारा
षडयंत्रों का होता रहा
अहं मर्दन

आँखों देखा मिथ्या करती नास्तिकता
लाचारी है लोक हृदय की आस्तिकता
पल पल दृश्यमान सत्य का
वह गर्जंन

जल समाधि में भी जीवित इतिहास रहा
न्याय पृष्ठ पर थर्राता परिहास रहा
धीमे-धीमे गहन शोध का
नव अर्चन

क्यों उदास है राम सिया का ‘रामचरित’
जन मन का सैलाब नमन कर रहा मुदित
भावों के ही राम भाव का
ही अर्पण

- रंजना गुप्ता
१ अप्रैल २०२०

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