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वचन के बंधन ही प्यारे हैं

 

वचन के बंधन ही प्यारे हैं
हाँ हमीं ऐसे सितारे हैं

हम न सोने से जड़े संतूर हैं
नूर भी हम हैं हमीं कोहेनूर हैं
अश्वमेधों में भरोसा भी नहीं
पर न कोई जंग हारे हैं

धर्म का टीका हमारी लाज है
जो भविष्यत् है वही तो आज है
डोर रेशम की रहे या सूत की
हम सदा उसके सहारे हैं

उत्सवों को उत्सवी करते रहें
अनकही को भी कही करते रहें
है यही संकल्प ये ही प्रार्थना
हम न बिछड़ेंगे किनारे हैं

- अश्विनी कुमार विष्णु
१५ अगस्त २०१६

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