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जले नेह के दीप

   



 

स्वर्णिम किरण धरा पर उतरी
जी भर मुस्काई

जले नेह के दीप दिलों में
नव उत्सव जागा।
अपनी कारा तोड़ स्वयं ही
अंधियारा भागा।
रंगत घुली नई मौसम ने
ले ली अंगड़ाई।

रौशन हुआ धरा का
आँगन मांडें राँगोली।
सौगातों को दें आमंत्रण
फैला कर झोली।
नेह पगे आख़र उच्चारें
प्यार भरे ढ़ाई।

फुलझड़ियों से नित्य नेह के
सुंदर फूल झरें।
वंचित, शोषक की कुटिया में
चलकर दीप धरें।
भेदभाव की चलो पाट दें
कुछ ऐसे खाई।

- मनोज जैन 'मधुर'
१ नवंबर २०१८

   

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