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         दीवाली में बैजू के घर

   



 

दीवाली में बैजू के घर
दिखता अबकी तम ही तम है

खटिया पर ही दिन भर रहता
बढ़ा उम्र के सँग यह दम्मा
काम नहीं कर पाता कुछ भी
बैठ गया, हो गया निकम्मा
पाँच-डेग चलने में भी अब
बहुत फूलता उसका दम है

बेटा जो कलकत्ते में था
दो माहों से बिस्तर पर है
दो पैसे जो कल लाता था
उसका भार इसी के सर है
आफत भोजन पर, कैसे वह
दीप खरीदे इसका गम है

बेटा एक और है लेकिन
उसने इससे बाँट लिया है
बस अपने बीबी-बच्चों सँग
खुद को सबसे छाँट लिया है
हर बैजू -घीसू -माधो के
घर कुदरत का यही सितम है

- रंजन कुमार झा
१ नवंबर २०१८

   

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