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     1  दीपक नया जलायें

शोर बहुत है
बस्ती बस्ती हैं अँधियारे छाये
दीपक कौन जलाये

जितने भी सूरज आये
सब दिये बुझाकर चले गये
उजियारे आने के
बस्ती के मंसूबे छले गये
कुछ तो लायें
आँधी जैसी सँग में तेज हवायें
दीपक कौन जलाये

चिंता जिनको बस चुनाव की
सूरज के कुनबे मौन धरे
हम तो सीधे भोले जनगण
किस किस के अब पाँव परें
तेल नहीं है
और न बाती बैठे आग लगाये
दीपक कौन जलाये

एक उपाय बचा अब केवल
सभी लोग हों साथ खड़ें
हँसे उजाला बस्ती-बस्ती
सूरज के सब साथ लड़ें
यही समय है
सब जन मिलकर अपने हाथ बढ़ायें
दीपक नया जलायें

- बृजनाथ श्रीवास्तव

१ नवंबर २०२०
 

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